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हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा काट रहे मारुति सुजुकी इंडिया के वर्करों ने डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस से बात की

यह आलेख 16 जुलाई 2024 को अंग्रेजी में छपे लेख Maruti Suzuki India workers jailed for life on frame-up murder charges speak to the WSWS का हिंदी अनुवाद है।

डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस को उन 13 में से दो मारुति सुजुकी इंडिया वर्करों के नीचे दिए गए ऑनलाइन इंटर्व्यू को प्रकाशित करने का गर्व है जिन्हें 2017 में हत्या के मढ़े गए आरोपों में जेल में डाला गया था। 

इनमें से केवल 11 वर्कर ज़िंदा बचे हुए हैं और जो जापान की ऑटो निर्माता कंपनी सुज़ुकी, पुलिस, अदालतों और हरियाणा और केंद्र सरकारों की साज़िश का शिकार हैं।

मारुति सुज़ुकी 13 (फ़ोटोः एमएसडब्ल्यूयू) [Photo: MSWU]

मज़दूरों का एक मात्र 'अपराध' है कि उन्होंने फ़ैक्ट्री के शॉप फ़्लोर पर ऐसे बर्बर काम के हालात को चुनौती दी जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़े भारत के ऑटो उद्योग में आम है।

वर्ल्ड सोशलिस्ट वेब साइट ने मढ़े गए आरोपों को विस्तार पूर्वक बेनकाब किया और उनकी रिहाई की मांग और मारुति सुज़ुकी वर्करों की बहाली के लिए भारतीय और अंतरराष्ट्रीय मज़दूर वर्ग को लामबंद करने के अभियान के तहत अप्रैल-मई 2017 में पांच हिस्सों में एक सीरिज़ प्रकाशित की।

इन 13 वर्करों में से 12 मारुति सुज़ुकी वर्कर्स यूनियन (एमएसडब्ल्यूयू) का पूरा नेतृत्व था। कंपनी समर्थित और सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त यूनियन के ख़िलाफ़ तीखे संघर्ष में मारुति सुज़ुकी के हरियाणा के मानेसर कार असेंबली प्लांट में मज़दूरों ने एक स्वतंत्र यूनियन एमएसडब्ल्यूयू का गठन किया था। 2011-2012 में मानेसर प्लांट के वर्करों ने लगातार जुझारू हड़तालें कीं, और कंपनी के अंदर धरना भी दिया। 

वर्करों की नाफरमानी ने केवल भारत के सबसे बड़े ऑटो निर्माता कंपनी के मैनेजमेंट का कोपभाजन नहीं बनाया बल्कि पूरे गुड़गांव-मानेसर औद्योगिक बेल्ट के मालिकों, जोकि देश के दो प्रमुख ऑटो निर्माता केंद्रों में से एक है, और भारतीय अभिजात शासक वर्ग के गुस्से को भी दावत दी, क्योंकि उन्होंने उस ठेका प्रथा के सिस्टम को भी चुनौती दी थी जिसे मज़दूरों को बांटने के लिए और भुखमरी मज़दूरी और काम के बर्बर हालात थोपने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

13 अक्टूबर 2011, गुरुवार को भारत के मानेसर में मारुति सुज़ुकी फ़ैक्ट्री के बाहर एक आम सभा में इकट्ठा हुए मारुति सुज़ीकी के हड़ताली वर्कर नारे लगाते हुए। (एपी फ़ोटो/गुरिंदर ओसान) [AP Photo/Gurinder Osan]

एमएसडब्ल्यूयू की मान्यता की क़ानूनी लड़ाई जीतने के चार महीने बाद 18 जुलाई 2012 को कंपनी ने एक उकसावे वाली कार्रवाई की। एक फ़ोरमैन ने जातिवादी टिप्पणी का विरोध करने वाले एक वर्कर पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की। जब वर्करों ने जियालाल के निलंबन का विरोध किया, उनपर कंपनी के गुंडों ने हमला कर दिया। इस अफ़रातफ़री में आग लग गई जिसमें एक एचआर मैनेजर की मौत हो गई।  

वर्करों पर दबिश देने और उनके ख़िलाफ़ आरोप मढ़ने के लिए कंपनी और भारतीय राज्य ने इस दुर्घटना का फ़ायदा उठाया। मारुति सुज़ुकी द्वारा दी गई लिस्ट के आधार पर पुलिस ने सैकड़ों वर्करों को गिरफ़्तार किया। अंत में 150 वर्करों के ख़िलाफ़ संगीन आपराधिक मामले लाद दिए गए और कंपनी ने मानेसर एसेंबली प्लांट में 2,300 अन्य मज़दूरों को भी काम से निकाल दिया। 

मार्च 2017 में मारुति सुज़ुकी 13 की सुनवाई हुई, तब तक वर्कर जेल में पांच साल बिता चुके थे। शुरू से लेकर अंत तक यह एक क़ानूनी तमाशा था। जज ने वर्करों के बयानों को मनमाने तरीक़े से निकाल दिया, इनमें वे भी बयान थे जो 18 जुलाई 2012 की घटनाओं के चश्मदीदों ने दिये थे। और ये इस आधार पर निकाले गए कि ये एमएसडब्ल्यूयू के प्रति 'पक्षपातपूर्ण' होंगे। सबूत बनाए गए थे और गवाहों को अभियोजन पक्ष ने बयान रटवाया था। सबूत देने की ज़िम्मेदारी वर्करों पर डाल दी गई थी और जज ने घोषणा की कि अगर वर्कर ये साबित न कर दें कि किसी और ने फ़ैक्ट्री में आग लगाई, तो यह इस बात का सबूत है कि उन्होंने ही आग लगाई थी। 

मज़दूरों का उत्पीड़न पूरे राजनीतिक तंत्र की देख रेख में हुआ था। इसकी शुरुआत हरियाणा और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी की सरकारों के मातहत हुई। लेकिन जब उनकी सरकार चली गई तो हिंदू बर्चस्ववादी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राज में भी यह उत्पीड़न अबाध जारी रहा। सुनवाई के निष्कर्ष में विशेष सरकारी वकील अनुराग हुडा ने वर्करों को इस आधार पर मौत की सज़ा दिए जाने की मांग की ताकि निवेशकों को एक संदेश दिए जाने की ज़रूरत थी। उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेक इन इंडिया का आह्वान कर रहे हैं, लेकिन इस तरह की घटनाएं हमारी छवि पर दाग हैं।'

स्टालिनवादी पार्टियां- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया और उनसे जुड़ी हुई ट्रेड यूनियनें, क्रमशः सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) और ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) ने मारुति सुज़ुकी 13 के पक्ष में मज़दूर वर्ग को लामबंद करने के लिए कोई भी अभियान नहीं चलाया। उन्हें डर था कि इस तरह की कार्यवाही बड़े उद्योगों की चहेती कांग्रेस पार्टी के साथ उनके राजनीतिक गठबंधन और मालिकों के साथ उनके सहज रिश्तों को प्रभावित करेगी। 

जियालाल अपनी पत्नी और बेटे के साथ। (एमएसडब्ल्यूयू) [Photo: MSWU supplied]

2021 में 13 में से दो मारुति सुज़ुकी वर्करों का देहांत हो गया। जियालाल 35 साल की उम्र में कैंसर से मरे। उनकी मौत के लिए भारतीय राज्य सीधे तौर पर दोषी है क्योंकि जेल प्रशासन उन्हें समय से इलाज़ मुहैया कराने में विफल रहा। उसी साल, इससे पहले 37 साल के पवन दहिया की बिजली लगने से मौत हो गई। वो कोविड-19 महामारी के दौरान अस्थाई तौर पर रिहा हुए थे। 

पिछले ढाई साल से, बाकी 11 वर्करों- राम मेहर, संदीप ढिल्लन, राम बिलास, सरबजीत सिंह, पवन कुमार, सोहन कुमार, अजमेर सिंह, सुरेश कुमार, अमरजीत, धनराज बांबी और प्रदीप गुज्जर को उनकी सज़ाओं के ख़िलाफ़ लंबित सुनवाई के कारण ज़मानत मिल गई। सरकार ने उनकी रिहाई का विरोध किया। हालांकि उनके वकीलों ने पूर्व अदालती फैसलों का हवाला दिया जो सज़ा को अस्थाई रूप से निलंबित करने का आधार बनते थे, जिसमें लंबी चली सुनवाई से पहले और बाद में जेल की पर्याप्त सज़ा काटी जा चुकी होती है और जिनकी अपील पर 'निकट भविष्य में' सुनवाई की उम्मीद नहीं होती है।

हालांकि 11 लोगों की अंतरिम रिहाई का स्वागत होना चाहिए, लेकिन मढ़े गए आरोपों को बेनकाब करने और उनकी पूर्ण बहाली की मांग का अभियान जारी रहना चाहिए।

यह समझना ज़रूरी है कि वो लगातार गंभीर ख़तरे में बने हुए हैं। भारतीय प्रशासन अपने मढ़े हुए आरोपों के मामले में एक इंच भी पीछे नहीं हटा है, चाहे वह कितने भी बदनाम और खामियों का पिटारा क्यों न हों। दरअसल, हरियाणा सरकार ने पहली सुनवाई के नतीजे पर अपनी अपील की तैयारी कर दी है, ताकि ज़िंदा बचे 11 मारुति सुजुकी ऑटो वर्कोरं को मौत की सजा देने के लिए दबाव डाला जा सके।

एमएसडब्ल्यूयू के नेता रहे दो वर्करों- महान और बहादुर (उत्पीड़न का सामना न करना पड़े इसलिए नाम बदल दिया गया है) ने डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस से बात की। भले ही वो अभी भी भारी मुश्किलों का सामना कर रहे हों, 2011 में जो लड़ाई उन्होंने शुरू की थी और उसकी अगुवाई की थी, उस पर उन्हें नाज़ है। उनकी जुझारू भावना बनी हुई है और पूरी दुनिया में अपने वर्गीय भाइयों और बहनों के संघर्षों से सीखने और उसमें योगदान देने के लिए वो उत्सुक हैं।

उनसे हुई बातचीत को हम नीचे दे रहे हैंः-

डब्ल्यूएसडब्ल्यूएसः आपको क्यों लगता है कि आपको और एमएसडब्ल्यूयू के अन्य नेताओं को मारुति सुज़ुकी के मानव संसाधन प्रबंधक (एचआर मैनेजर) अवनीश कुमार देव की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था? आपके अनुसार इस मढ़े हुए आरोप के लिए कौन ज़िम्मेदार था? आपके अनुसार राज्य और राष्ट्रीय सरकारें इसमें क्या भूमिका निभाती हैं?

महानः एचआर मैनेजर की हत्या में एमएसडब्ल्यूयू के नेताओं को कंपनी ने फंसाया ताकि वे वर्करों की यूनियन को तोड़ सकें। कंपनी अपनी साज़िश में कामयाब रही। कांग्रेस पार्टी की प्रदेश सरकार ने मारुति सुज़ुकी वर्करों को जाल में फंसाने के लिए कंपनी को पूरा समर्थन दिया। सरकार ने मज़दूरों के ख़िलाफ़ एक बड़े वकील को काम पर लगाया, जिसने रिहाई का लगातार विरोध कर जेल से रिहाई नहीं होने दी। 

बहादुरः ये अभी तक पता नहीं चल पाया कि अवनीश देव की हत्या कैसे हुई। यह एक बड़े हॉल में हुआ लेकिन वो 100 प्रतिशत जले मिले थे। उस हॉल में ऐसा कुछ नहीं था जिससे इतनी बड़ी आग लग सके और एक व्यक्ति को 100 प्रतिशत जला डाले। मैनेजमेंट और प्रशासन का यह पूरा मर्डर गेम घटित हुआ? गुड़गांव में हमारी यूनियन बहुत मज़बूत थी। इसकी वजह से, मैनेजमेंट ने यह पूरा खेल रचा, मैनेजमेंट इसके लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार है। सरकार पूंजीपतियों के हाथ की कठपुतली है, तो हम सरकार के साथ क्या कर सकते हैं? हमारे पास और क्या उम्मीद है?

डब्ल्यूएसडब्ल्यूएसः अब यह जगज़ाहिर है कि गिरफ़्तार वर्करों को 2012 में पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया गया था। कृपया, क्या आप बताएंगे कि क्या हुआ?

महानः मज़दूरों को पुलिस ने पहले गिरफ़्तार किया और फिर टॉर्चर किया। उन्हें लाठियों से पीटा गया और दूसरे तरीक़ों से टॉर्चर किया गया, जिन्हें बयां भी नहीं जा सकता।

बहादुरः पुलिस रिमांड के दौरान हमें बहुत कुछ सहना पड़ा। यह उससे भी बुरा था जो वे एक पेशेवर अपराधी के साथ करते हैं। उन्होंने हाथ बांध कर छत से लटका दिया और हम बेहोश हो गए। इसके साथ ही दो पुलिस वाले हमारे दोनों पैरों को दो दिशाओं में खींच रहे थे। इसके बाद उन्होंने हमारे ऊपर 100 किलो का रॉड रख दिया और एक पुलिसवाला उस पर बैठ गया। भाई, यह बहुत बहुत दर्दनाक अनुभव था।

डब्ल्यूएसडब्ल्यूएसः लंबी जेल के दौरान आपको और आपके परिवार को मारुति सुजुकी वर्करों और अन्य यूनियनों से क्या समर्थन मिला?

महानः आजीवन कारावास के दौरान, अन्य यूनियनों ने मिलकर पूरा समर्थन दिया, वकीलों के खर्च दिए और परिवार के सदस्यों को आर्थिक मदद दी। 

बहादुरः जेल की लंबी सज़ा के दौरान, हम और हमारे परिवारों को यूनियन की ओर से पूरा समर्थन मिला। इन लोगों ने हमारे परिवार को बहुत आर्थिक मदद दी। मैं अपनी दिल की गहराईयों से उनका धन्यवाद करता हूं।

'सभी देशों के मज़दूरों को एक होने की ज़रूरत है और पूंजपतियों के ख़िलाफ़ अपनी एकता बनाए रखनी है'

डब्ल्यूएसडब्ल्यूएसः क्या आप जानते हैं कि न तो सीटू और न ही एआईटीयूसी ने कानूनी तौर पर प्रताड़ित मारुति सुजुकी मज़दूरों की रिहाई के लिए कोई अभियान चलाया? इस पर आपका क्या विचार है?

महानः उन्होंने 'जितनी मदद कर सकते थे उतनी मदद की' या ऐसा उन्होंने कहा। हमें विश्वास में लेने के बाद उन्होंने हमारे लिए कुछ नहीं किया। चूंकि हम जमानत पर हैं, मैं इस तथ्य से मज़बूर हूं कि अगर मैं इन संगठनों के ख़िलाफ़ बयान दूंगा तो मैं ख़तरे में पड़ जाऊंगा।

बहादुरः मैं सीटू के बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन कई यूनियनों ने हमारा पूरा समर्थन किया और हमारे और हमारे परिवार के साथ सहयोग किया। मैं ट्रेड यूनियों का दिल से आभार प्रकट करता हूं। लेकिन मेरे विचार से, बड़े यूनियन नेता अपनी रोटी बचाने के लिए काम करते हैं और यही असल बात है। इसीलिए मैं ट्रेड यूनियनों से अपील करता हूं कि वर्करों के अधिकारों के लिए संघर्ष करें और वर्करों के साथ खड़े रहें ताकि वर्कर अपने अधिकरों के लिए लड़ सकें और मैनेजमेंट को मुंहतोड़ जवाब दे सकें। 

डब्ल्यूएसडब्ल्यूएसः मारुति सुज़ुकी के मज़दूरों को होने वाली तकलीफ़ का मूल कारण पूंजीवाद है। हमारा मानना ​​है कि मज़दूरों को दुनिया भर में अपने भाइयों और बहनों के साथ हाथ मिलाकर सचेत रूप से समाजवाद के लिए संघर्ष करना चाहिए। डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस और आईसीएफ़आई ने इस तरह का संघर्ष छेड़ने के लिए इंटरनेशनल वर्कर्स अलायंस ऑफ रैंक-एंड-फ़ाइल कमेटियों (आईडब्ल्यूए-आरएफ़सी) के निर्माण के लिए संघर्ष शुरू किया है। इस पर आपके विचार क्या हैं?

महानः पूरी दुनिया के मज़दूरों को एकजुट होने और पूंजीवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की ज़रूरत है। डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस और आईसीएफ़आई द्वारा शुरू गई आईडब्ल्यूए-आरएफ़सी पहलकदमी बहुत सराहनीय है।

बहादुरः हम जो भुक्तभोगी हैं, अच्छी तरह जानते हैं कि दुनिया के सभी मज़दूर नाइंसाफ़ी झेलते हैं, लेकिन फिर भी मज़दूर इसे नहीं समझते। हम मज़दूर हैं, लेकिन अगर हम एकजुट होते हैं तो हम किसी को भी झुका सकते हैं, इसीलिए मैं भाइयों से अपील करता हूं कि एक साथ लड़ें और मैं वर्करों के लिए लड़ने वाले संगठनों का दिल से शुक्रिया कहता हूं।

डब्ल्यूएसडब्लूएस: आपने उन अपराधों के लिए 10 साल जेल में बिताए हैं जो आपने नहीं किए। कृपया जेल की स्थितियों के बारे में कुछ बताएं। क्या आपको किसी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए जेल से बाहर जाने दिया गया?

महानः हमने जेल में बड़ी मुश्किलों और दुखों का सामना किया। किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए, पहले हमें कोर्ट से इजाज़त लेनी पड़ती थी फिर उसमें शामिल होने दिया जाता था।  


बहादुरः यह सच है कि हमने उस अपराध के लिए जेल में 10 साल सज़ा काटे, जिसे हमने किया ही नहीं। जेल की हालत ऐसी है जैसे ज़िंदा रहते हुए नरक भुगतना। हर चीज़ में समस्या है- जेल में खाना, पानी, नहाना और कपड़े धोना। हम जेल में 7,000 रुपये महीने खर्च करते थे। कई बार परिवार दे नहीं पाता था। हालांकि हमारे परिवारों ने बच्चों का पूरा ख्याल रखा और यूनियन ने उनका पूरा ख्याल रखा। परिवार और यूनियन की बदौलत हमने जेल में अपना समय काटा।

डब्ल्यूएसडब्लूएस: आपको क्यों लगता है कि उन्होंने 10 साल बद अब आपको जेल से बाहर जाने दिया?

महानः वे अभी भी हमें बाहर नहीं आने देता चाहते थे, यह तो कोर्ट का नियम है जिसके कारण हमें ज़मानत मिली। 

बहादुरः जेल से बाहर आने के लिए हमने सरकर और कोर्ट के बनाए नियमों का ही पालन किया। कोर्ट का नियम है कि सज़ा का एक चौथाई हिस्सा बिताने के बाद, क़ैदी को ज़मानत मिल जाती है। इसीलिए आज हम ज़मानत पर बाहर हैं।

डब्ल्यूएसडब्लूएस: आपकी ज़मानत पर उन्होंने क्या पाबंदियां लगा रखी हैं?

महानः हमारी ज़मानत के लिए, हमें बाहर आने के लिए दो लाख रुपये देने थे या देने का वादा करना था। बंदिश ये है कि हम बाहर कोई ग़ैरक़ानूनी काम नहीं कर सकते। 

बहादुरः ज़मानत मिलने के बाद, हम पर पाबंदी है कि न तो हम कंपनी गेट के बाहर जा सकते हैं या कंपनी की संपत्ति के अंदर जा सकते हैं। गुड़गांव में कहीं और भाषण देने पर भी पाबंदी लगाई गई है। 

डब्ल्यूएसडब्लूएस: जीवनयापन के लिए आपको कोई काम मिल सका है? आपका परिवार इससे कैसे निपट रहा है?

महानः हमें जीवनयापन के लिए अभी तक कोई काम नहीं मिल सका है। हमें कोई काम नहीं देता। हमारा परिवार बहुत दुखी है और ग़रीबी में जीवन गुजार रहा है। 

बहादुरः अभी तक हमें कोई स्थायी काम नहीं मिल सका है लेकिन हम अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए छोटे-मोटे काम जरूर कर रहे हैं। आप जानते हैं कि 10 साल बाद जेल से बाहर आने के बाद काम ढूंढना बहुत मुश्किल हो जाता है। कुछ निश्चित रूप से करियर के लिए प्रयास कर रहे हैं। अच्छा काम करने के लिए अच्छी खासी रकम होनी चाहिए जैसे दुकान खोलना आदि। अभी हम ऐसा करने में असमर्थ हैं। मुझे डर है कि सज़ा कभी ख़त्म नहीं होगी और जीवन भर हमारे साथ रहेगी।

डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस: क्या आपके पास कोई अन्य विचार है जो आप अन्य देशों के मज़दूरों को बताना चाहेंगे?

महान: सभी देशों के मजदूरों को पूंजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ एकजुट होने और अपनी एकता बनाए रखने की बेहद ज़रूरत है।

बहादुर: मैं दुनिया के सभी मजदूरों को संदेश देना चाहता हूं कि जिस तरह हम नारा लगाते हैं कि हम एक हैं, उसी तरह हमें एकजुट रहना चाहिए। नारे लगाने से कुछ हासिल नहीं होगा। जब तक हम जातिवाद, हिंदू-मुस्लिम विभाजन नहीं छोड़ेंगे, हम इसी तरह उत्पीड़ित रहेंगे। अगर हमें इंसान के तौर पर सम्मान पाना है तो सभी को मिलकर आवाज उठानी होगी। मैं अपनी ओर से देश-विदेश के सभी मज़दूरों को नमन करता हूं। हमारे विचारों को सुनने समझने के लिए धन्यवाद, साथियों। हम सभी मज़दूरों के साथ हैं और उनके लिए आवाज उठाते रहेंगे।'

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