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रणनीतिक रिश्ते बढ़ाने के लिए अमेरिकी शीर्ष अधिकारियों का श्रीलंका दौरा

यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल का जो मूलतः US high official visits Sri Lanka to enhance strategic ties 16 दिसम्बर को प्रकाशित हुआ थाI

दक्षिणी और मध्य एशिया के लिए अमेरिका के सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू ने दिसम्बर की शुरुआत में भारत और नेपाल समेत इस इलाक़े की यात्रा के दौरान श्रीलंका का तीन दिवसीय दौरा किया था। इस दौरे का मक़सद था दक्षिण एशिया में संबंधों को और मज़बूत करना, ख़ासकर श्रीलंका में नई चुनी गई गई जनथा विमुक्ति पेरामुना/नेशनल पीपुल्स पॉवर सरकार के साथ, क्योंकि वॉशिंगटन ने चीन के ख़िलाफ़ अपनी जंग की तैयारी तेज़ कर दी है।

दक्षिण और मध्य एशिया के लिए अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू ने दिसम्बर 2024 में श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके से मुलाक़ात की। (फ़ोटो: X/@anuradisanayake) [Photo: X/@anuradisanayake]

लू के साथ यूएसएड डिप्टी असिस्टेंट एडमिनिस्ट्रेटर अंजली कौर और ट्रेज़री असिस्टेंट सेक्रेटरी रॉबरट् कैप्रोथ भी थे। इन्होंने 23 सितम्बर को कार्यभार ग्रहण करने वाले राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके समेत श्रीलंका के शीर्ष राजनीतिक शख़्सियतों से मुलाक़ात की। जेवीपी/एनपीपी ने 14 नवम्बर को हुए संसदीय चुनावों में दो तिहाई बहुमत हासिल किया।

इन चुनावों से श्रीलंकाई राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। जेवीपी और एनपीपी के साथ इसका चुनावी मोर्चा, जो इससे पहले कभी सत्ता में नहीं पहुंचा था, ने 2022 में देश के विदेशी कर्ज़ भुगतान में डिफ़ॉल्ट हो जाने और आर्थिक और सामाजिक संकट में घिर जाने के बाद पारंपरिक पार्टियों के ख़िलाफ़ जनता के गुस्से का फ़ायदा उठाया। एक विशाल जनउभार ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को इस्तीफ़ा देने और देश के भागने के लिए मजबूर किया।

लू के दौरे से पहले 10 अक्टूबर को अमेरिकी प्रशांत फ़्लीट के कमांडर स्टीव कोएलर का दौरा हुआ था। ये दोनों दौरे नई सरकार के साथ संबंधों को और मज़बूत करने और मौजूदा सैन्य सहयोग को सुनिश्चित करने की स्पष्ट मंशा से हुए थे। साल 2022 में दिसानायके और अन्य पार्टी नेताओं ने कोलंबो में अमेरिकी राजदूत जूली चुंग के साथ मुलाक़ात की थी, जिन्होंने एलान किया था कि 'जेवीपी एक महत्वपूर्ण पार्टी' है और 'जेवीपी नेतृत्व से व्यक्तिगत तौर पर संबंध' रखना उनकी ज़िम्मेदारी है।

सात नवम्बर को लू ने दिसानायके से मुलाक़ात की और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ उनकी सरकार के अभियान को वॉशिंगटन का समर्थन ज़ाहिर किया, जोकि जेवीपी/एनपीपी चुनावी प्रचार का मुख्य मुद्दा था। इसका दावा कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था के संकट को हल कर देगा, इस तथ्य को रेखांकित करता है कि जेवीपी ने बहुत पहले ही मार्क्सवादी और समाजवादी होने के अपने झूठे दावों को तिलांजलि दे दी है, और पूंजीवाद के रक्षक के रूप में वह कोलंबो के राजनीतिक तंत्र में पूरी तरह नाभिनालबद्ध हो गई है।

डेली मिरर के एक स्तंभाकार के सवाल का जवाब देते हुए अमेरिकी दूतावास के अधिकारी ने कहाः 'लू ने क्षेत्रीय सुरक्षा, लोकतांत्रिक शासन और आर्थिक सुधार समेत अमेरिका-श्रीलंका की साझेदारी में आगे बढ़ती मुख्य प्राथमिकताओं की अहमियत पर ज़ोर दिया।' ख़ासकर उन्होंने पिछले राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे द्वारा किए गए 3 अरब डॉलर के आईएमएफ़ (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) बेलआउट कर्ज़ समझौते के तहत आईएमएफ़ खर्च कटौती की मांगों को पूरी तरह लागू करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।

जेवीपी पूरी तरह बिछ गई है और कर्ज़ समझौते के पहलुओं पर फिर से बातचीत करने के अपने चुनावी वायदे से मुकर गई है। 21 नवंबर को संसद में अपने पहले भाषण में दिसानायके ने एलान किया कि चूंकि अर्थव्यवस्था बहुत बड़े संकट में है, इसलिए फिर से वार्ता का सवाल नहीं है।

मिरर की ओर से ये पूछे जाने पर कि 'क्या नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में कोई नीतिगत बदलाव आएगा', लू का जवाब कूटनीति भरा था। उन्होंने घोषणा की कि अमेरिकी नीति, लोकतंत्र, आर्थिक विकास और क्षेत्रीय सुरक्षा के प्रति दीर्घ अवधि की प्रतिबद्धता को दिखाती है और संकेत दिया कि ये 'उसूल' बदलेंगे नहीं।

हकीक़त में, फ़ासीवादी ट्रंप सार्वजनिक खर्च में भारी कटौती करने, लाखों प्रवासियों को प्रत्यर्पित करने, अमेरिकी प्रभुत्व के लिए पैदा होने वाली किसी भी चुनौती के ख़िलाफ़ आर्थिक और सैन्य युद्ध छेड़ने की वक़ालत करने वालों से लेकर अरबपति अति अमीरों, युद्ध उन्मांदी और फ़ासीवादियों से भरी धुर दक्षिपंथी कैबिनेट को जुटाकर 20 जनवरी को अपने शपथग्रहण समारोह की तैयारी कर रहे हैं।

पहले ट्रंप प्रसासन की नीतियां और अपने अगले कार्यकाल में जिन चीन विरोधी बयानबाज़ी करने वालों को उन्होंने नियुक्त किया है, वह दिखाता है कि चीन के साथ आर्थिक और सैन्य टकराव तेज़ी से तीखा होगा।

हिंद महासागर में श्रीलंका की बहुत रणनीतिक स्थिति है और प्रमुख समुद्री मार्ग इससे होकर जाते हैं और चीन के ख़िलाफ़ पेंटागन की जंग की योजनाओं में इसकी बहुत अहम भूमिका है। ऑस्ट्रेलिया में स्वाइनबर्न यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी के डॉ. छुलानी अट्टानायके ने 18 अक्टूबर को लिखाः 'अमेरिका की हिंद प्रशांत रणनीति में सबसे अहम तत्व है, श्रीलंका जैसे क्षेत्रीय साझेदारों की क्षमता में बढ़ोत्तरी करके समुद्री सुरक्षा को मज़बूत करना।'

हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि अपने प्रतिक्रियावादी कम्युनिस्ट विरोधी गाली गलौच के लिए जाने जाने वाले ट्रंप असल में किस तरह जेवीपी/एनपीपी सरकार के साथ संबंध बनाएंगे, जिन्हें मीडिया में नियमित रूप से 'मार्क्सवादी' और 'वामपंथी' बताया जाता है और यह सब दिसानायके को बहलाने, फुसलाने या धमकाने के लिए किया जाता है, जैसा कि उन्होंने अपने पहले कार्यकाल के दौरान उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन के साथ किया था।

बहुत निश्चित तौर पर ये कहा जा सकता है कि दिसानायके और जेवीपी/एनपीपी, ट्रंप प्रशासन जो भी मांगेगा, उसे समायोजित करने के लिए और दक्षिणपंथ की ओर और झुकेंगे। माओवाद, कास्त्रोवाद और सिंहला लोक लुभावन पर आधारित पेटी बुर्जुआ संगठन जेवीपी ने बहुत पहले ही चीन समर्थक और अमेरिका विरोधी बयानबाज़ी को त्याग दिया था।

चीन अब श्रीलंकाई सरकार से मेलजोल बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। 25 नवंबर को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के इंटरनेशनल डिपार्टमेंट के वाइस मिनिस्टर सुन हैयान की अगुवाई वाला एक चीनी प्रतिनिधिमंडल दिसानायके से मिला था।

अधिकारियों ने श्रीलंका के साथ क़रीब सहयोग के लिए चीन के तैयार होने की बात कही और निवेश प्रोत्साहन, टेक्नोलॉजी ट्रांसफ़र, डिजिटाइजेशन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में विकास जैसे क्षेत्रों में समर्थन की पेशकश की। पांच दिन बाद, श्रीलंकाई प्रधानमंत्री हारिनी अमारासुरिया और श्रीलंका में चीन के राजदूत क्वी झेनहोंग के बीच चीन-श्रीलंका निवेश अवसरों को मज़बूत करने को लेकर एक वार्ता हुई।

हाल ही में हुए चुनावी प्रचार के दौरान दिसानायके ने संकेत दिया था कि श्रीलंका अपनी विदेश नीति में कथित स्वतंत्र और सबके साथ बराबरी वाला नज़रिया अपनाएगा। हालांकि आईएमएफ़ कर्ज़ पर पुनर्विचार के उनके वादे की तरह ही अमेरिका और चीन के बीच संतुलन स्थापित करने की सरकार की कोशिश जल्द ही हवा हो जाएगी। दिसानायके को यह बखूबी पता है कि अगर वॉशिंगटन को ज़रूरी लगा तो अमेरिका और इसके सहयोगी आईएमएफ़ कर्ज़ समझौते को पटरी से उतार सकते हैं और श्रीलंका की आर्थव्यवस्था को भी।

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